एक बार फिर से सजा है कुरुक्षेत्र का मैदान,
फर्क है इतना मैदान है पूरा भारत महान.
छाते विदेसी इस धरती पर, बनके कौरव,
लूटते विदेसी इस धरती को बनके कौरव.
सोये हुवे ओ पान्ड्व जागो,
सोये हुवे ओ केशव जागो,
जो है तैयार हमारे भितर,
बजाने को पानज्नय का नाद.
पूकारती है यै धरा,
पूकारती है यै वसूनधरा,
बजाने को शंखनाद,
ऊथाने को धनुष ओर बाण.
P.S.
This post is a part of the Patriotic Poetry Contest, organised by Gurukripa