Sunday, September 11, 2011

बस तुम्हारी ही जिद है, हमारी नहीं?




Language is a priceless piece of knowledge. I unfortunately am familiar to only three. English, Hindi and Bengali. So, after writing about 30 posts in English, I thought to change my style a bit and hence, tried writing in Hindi, for a change, on something light and flirty.
Hope you will have a nice smile at the end of the post!
For my friends who are not well- versed with Hindi, don't be upset! The English translation is on its way!
Cheers!


So, this guy on a beautiful cloudy morning, sits beside his fiance who has come an hour late. So, even though he is bubbling with excitement on seeing her, he acts as if he's angry and    starts a conversation with these lines..






चूम लूँगा मैं झुक कर पेशानी तुम्हारी,
सजा लूँगा होठों पे निशानी तुम्हारी,
ग़ज़लें कहूँगा, गुनगुनाऊंगा नज्में,
ये रातें नहीं हैं अब जानी तुम्हारी.
पास हूँ मैं, अब कोई बेक़रारी नहीं,
बस तुम्हारी ही जिद है, हमारी नहीं?

लम्हें मेरी जाँ, ये खोये नहीं है,
ये ख्वाब हैं ऐसे जो सोये नहीं हैं,
सहेज लो अपनी आँखों में इनको,
धूप की आँच में ये भिगोये नहीं हैं.
फिक्र ए रोज़गारी, इनपे तारी नहीं,
बस तुम्हारी ही जिद है, हमारी नहीं?

गुज़ारिश मेरी चाहे खारिज ही कर दो,
सुरूर इश्क का दिलो जाँ में भर दो,
पर मुंदने लगी हैं ये आँखें तुम्हारी,
तमन्ना को अब ख्वाबों का शहर दो.
सच, पलकें तुम्हारी क्या भारी नहीं,
बस तुम्हारी ही जिद है, हमारी नहीं?

वस्ल की ये` रात अब ढलने लगी है,
दिल की भी हालत बिगड़ने लगी है,
नज़रें उठा कर तो देखो ज़रा तुम,
सुबह अब दबे पाँव चलने लगी है.
वक़्त की अब हमसे राजदारी नहीं,
बस तुम्हारी ही जिद है, हमारी नहीं?




How can the Girl stay behind..Like they say...All is fair..In Love and War! So she gives it back, equally! This is what she has to say...


हमारी जिद  कब् तुमने सुनी  है ?
हुकुमत हमेशा तुम्हारी  चली  है 
गुमाँ  तुमको  होगा  मेरी  हार  पर 
तुम्हारी  जीत  क्या  मेरी  मर्जी  नहीं ?


मै  चाहूँ  तो, आसमान  से  बात  करुं 
मैं चाहूँ  तो, अपने लिए हि सजुं
तुम्हारी  हर एक  ज़िद  को  भी  में 
चाहूँ तो अपनी  ज़िद  से  तोड  दुं 


मगर तुमको आता है 
खूब 
बातें  बनाना ,
मुझे  अपने  आगोश  में 
फिर  चुपाना ,
तुम्हारी  झिड्की  मुझको 
भाति बहूत  है 
चेहरे  पर  जो  भी  हो ,
हाँसी  आति  बहूत है 


तुम  जब  रूठ  कर  बैठ  जाते  हो  दूर 
मनाने  में  मुझको  शर्म  आति  नहीं 
तुम्हारी  ज़िद  के  आगे  झुक  जाना ,
ये  मेरी  ही  ज़िद  है , तुम्हारी  नहीं ..?

5 comments:

  1. well thought about.....deep into relationships...

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  2. Hahaha...loved it...wt a beautiful combo f love humor n relationship..jhakkas!

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  3. once again.... kya bolu yaar.... i have no words less then amazing ..:)

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  4. Soumyadeep,
    Thank you ya!
    :)
    Light yet deep!
    Just my way! :)


    @Rahman,
    Thank you soooo much! Love it when you appreciate!!! Keep it up! :P

    Mani,

    hehe!!
    ;)

    Glad it could tickle the heart! :)
    Cheers!
    Do share it around!

    ReplyDelete

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